पूरी जानकारी कृषि कानून के बारे में
|
|
नए कृषि कानून और क्यों हो रहे है आंदोलन
देश में कृषि क्षेत्र के उत्थान और किसानो की आय बढ़ाने के उद्देश्य से जून, 2020 में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के अध्यादेश के माध्यम से तीन कृषि कानूनों का निर्माण किया गया है। इन कृषि कानूनों का विरोध विभिन्न किसानो तथा किसान संगठनो के द्वारा किया जा रहा है।।
दिसम्बर , 2020 में किसानो का विरोध प्रधर्सन बड़े आंदोलन के रूप बदल गया। किसानो द्वारा राजधानी दिल्ली को आने वाली सड़क सम्पर्को को अवरुद्ध कर दिया गया। किसान इन कृषि कानूनों को रद्द करने पर अड़े हुए है। सरकार और किसानो के प्रतिनिधियों के बीच कई बार बार्ता के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल पाया है।।
किसानो की मांगे -
(आंदोलन कर रहे किसानो की प्रमुख मांगे कुछ इस तरह है )
1 - कृषि कानूनों का किसानो द्वारा विरोध किया जा रहा है। उनका कहना है की ये कानून मंडी समिति की मौजूदा व्यवस्था के तहत उन्हें हासिल प्रोटेक्शन को समाप्त कर देंगे।
2 - किसानो के विरोध का सबसे बढ़ा कारन न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP ) की समाप्ति का डर है। कृषको का कहना है की इन तीनो कृषि कानूनों के माध्यम से( MSP )को ख़तम करने की कोसिस कर रही है।
3 - वही सरकार मौजूदा ( MSP ) प्रणाली को ध्वस्त किये बिना कृषि उपज बाजार समितियों ( APMCs ) की सरचना के बहार बिचैलियो और सरकारी करो से मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाकर कृषि व्यापार सरकारी हस्तछेप को दूर कर बाजारों के माध्यम से किसानो की आय सुनिचित करना चाहती है।
4 - आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीनो कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग मुख्यता से कर रही है।
5 - किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक दर्जा देने की मांग प्रमुखता से कर रहे है।विधेयक के जरिये किसानो को लिखित में आश्वसान दिया जाये की ( MSP ) और कन्वेंशनल फ़ूड ग्रेन खरीद सिस्टम ख़त्म नहीं होगा।
6 - किसानो के सभी तरह की ऋण माफ़ किया जाए।
7 - राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का 10 साल से पुराने वाहनों पर लगा प्रतिबन्ध हटाया जाये।
8 - प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ किसानो को मिले , वर्तमान में लाभ किसानो के बजाय बीमा कम्पनी को मिल रहा है।
9 - किसानो की न्यूनतम आमदनी सुनिचित की जाय। लघु और सीमांत किसानो को 60 वर्ष की आयु के बाद कम से कम 5000 मासिक पेंसन दी जाय।
10 - किसानो का बकाया गन्ना भुगतान किया जाए। चीनी का मूल्य 40rupay तक किया जाये।
11 - पिछले 10 वर्षो में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 3 लाख से अधिक किसानो ने आत्महत्या की है। आत्महत्या करने वालो किसानो के परिवारों का पुनर्निवास और सरकारी नौकरी दी जाये।
12 - मनरेगा को खेती से जोड़ा जाये , खेती की चीजों को (GST) से मुक्त किया जाये तथा सिचाई के लिए नलकूप की बिजली मुफ्त में मिले।
13 - कृषि को 'विश्व व्यापार संगठन ' से बहार रखा जाये। मुक्त व्यापार समझौतों में कृषि पर चर्चा न की जाये।
14 - देश में पर्याप्त पैदावार वाली फसलों का आयात बंद हो। भूमि अधिग्रहण वर्ष 2013 के ने अधिनियम से ही किया जाये। राज्यों को किसान विरोधी कानून बनाने से रोका जाये।
अब बात करते है उन कृषि कानूनों की जो केंद्र सरकार द्वारा पारित किये गए। और उन बातो की जिसकी वजह से किसान सड़को पे उतरने के लिए मजबूर हो गए।।
(प्रमुख तीन नए कृषि कानून)
1 - कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (सवर्धन एवं सरलीकरण )
इसके मुख्या प्रावधान है।
a - किसानो को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रा प्रदान करते हुए ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना , जहा किसान एवं व्यापारी कृषि उपज मंडी के बहार अन्य माध्यम से भी उत्पादों का सरलतापूरवक व्यापार कर सके।
b - राज्य के भीतर एवं बहार देश के किसी भी स्थान पर किसानो को अपनी उपज बिना किसी रोक के बेचने के लिए अवसर एवं व्यवस्थाय प्रदान करना है।
c - परिवहन लागत एवं कर में कमी लाकर किसानो को उत्पाद की अधिक कीमत दिलाना।
d - ई-ट्रेडिंग के माध्यम से किसानो को उपज बिक्री के लिए ज्यादा सुविधाजनक तंत्र उपलब्ध करना।
e - किसानो से प्रोसेसर्स , निर्यातकों , संगठित रिटेलरों का सीधा सम्बन्ध स्थापित करना , ताकि बिचौलिए दूर हो।
(इस पहले कानून से किसानो की आसंकाय)
a - नए कानून से पुरानी प्रचलित न्यूनतम मूल्य समर्थन (MSP) प्रणाली का ख़त्म हो जायेगा।
b - कृषक यदि पंजीकृत कृषि उत्पाद बाजार समिति -मंडियों के बहार बेचेंगे तो मंडियों के प्रथा समाप्त हो जाएगी।
c - ई-ट्रेडिंग पोर्टल प्रासंगिक हो जायेगे।
2 - कृषक (सशक्तिकरण व् सरक्षण )कीमत आश्वाशन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
इस कानून के मुख्य प्रावधान निम्न्लिखित है।
a - इसमें किसानो को व्यापारियों , कम्पनियो , प्रसंस्करण इकाइयों , निर्यातकों से सीधे जोड़ने का प्रावधान है। यह कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उपज के दाम निर्धारित कराएगा।
b - बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वसान तथा दाम बढ़ाने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ भी मिलेगा।
c - नया कानून बाजार की अनिश्चितता से कृषको को बचाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
d - किसानो तक अत्याधुनिक कृषि प्रधोगिकी , कृषि उपकरणों एवं उन्ननत खाध बीज -पहुचाये जायेगे।
e - किसी भी विवाद की सिथति में उसका निपटारा 30 दिन में स्थानीय स्तर पर किया जायगा।
(किसानो की असांकाय )
a - अनुबंधित कृषि समझौते में किसानो का पक्ष कमजोर होगा ,वे कीमत निर्धारित नहीं कर पाएंगे।
b - छोटे किसान कैसे कांट्रैक्ट फार्मिंग कर पाएंगे , प्रायोजकों द्वारा छोटे किसानो को अंदाज किया जायेगा।
c - किसान इस ने सिस्टम से परेशान होगा। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा। अदालती मामलो में देरी से किसानो का धन व्यय होगा।
3 - आवश्यक वस्तु ( संशोधन ) विधेयक , 2020
( इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है। )
a - इसके माध्यम से अनाज , दलहन , तिलहन , प्याज एवं आलू आदि को अत्यावश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया है।
b - अपवाद की स्तिथि , जिसमे 50 % से ज्यादा मूल्य वृद्धि शामिल है,को छोड़कर इन उत्पादों के संग्रह की सीमा तय नहीं की जाएगी।
c - इस प्रावधान से कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। कीमतों में रूकावट आएगी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुरु होगी।
d - देश में कृषि उत्पादों के भंडारण एवं प्रसंस्करण की क्षमता में वृद्धि से किसान अपनी उपज सुरक्षित रख सकेगा एवं उचित समय आने पर बेच पायेगा।
( किसानो की असंकाये )
a - किसानो को इस बात की असांका है की इस नए कानून से बड़ी कम्पनिया आवशयक वस्तुओ का भण्डारण करेगी एवं उनका हस्तक्षेप बढ़ जायेगा।
b - भंडारण की अनुमति मिल जाने से बाजार में जमाखोरी और काला बाजारी में बढ़ोत्तरी होगी , जिससे उपभोक्ता को नुक्सान उठाना पड़ेगा।
( MSP को लेकर किसानो का डर )
राष्ट्रपति की मुहर के बाद पुरे देश में लागु नय प्रावधानों वाले कृषि कानून 2020 में न्यूनतम समर्थन मूल्य
( MSP ) एक महत्वपूर्ण कड़ी बनकर उभरी है। किसानो को आशंका है कि नए कृषि कानूनों में कृषको द्वारा उपजाई गयी फसलों को MSP पर बेचने कि सुविधा समाप्त हो जाएगी।
बड़े कृषि राज्यों पंजाब और हरियाणा में इसका ज्यादा विरोध हो रहा है , क्योकि इन्हे डर है कि सरकार धीरे धीरे MSP को ख़त्म करना चाहती है। कृषि माल कि बिक्री कृषि उपज मंडी समिति में होने कि सरत हटा ली गयी है , जो खरीद मंडी से बहार होगी , उस पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगेगा। जब किसानो के उत्पाद कि खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पायेगी कि किसानो को MSP मिल रहा है या नहीं।
आशंका कि शुरुआत यही से शुरू होती है कि किसी परिस्थति में सरकार धीरे -धीरे MSP को समाप्त कर देगी।।
क्या है MSP ?
न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP ) सरकार द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक न्यूनतम कीमत होती है , जिस पर किसान चाहे तो सरकार को अपना माल बेच सकते है , यदि बाजार की कीमत कम है। इस प्रकार MSP किसानो को बाजार जोखिम के प्रति सुरक्षा प्रदान करती है।
भारत में MSP की अवधारणा को( लक्ष्मीकांत झा) समिति की सिफारिशों पर वर्ष 1965 में लागू किया गया था। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर MSP की घोसणा फसलों की बुवाई से पहले की जाती है। ताकि किसान किसी फसल की बुवाई करने या न करने का निर्णय कर सके।।
MSP के बारे में सुझाव कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा दिया जाता है। लेकिन इसके बारे में अंतिम निर्णय आर्थिक मामलो की मंत्रिमंडल समिति द्वारा ही लिया जाता है।।
किन फसलों पर दिया जाता है MSP ??
(इनका विवरण इस प्रकार है अनाज की 7 फसले है ; गेहू,धान ,बाजरा , जौ,ज्वर, रागी और मक्का , जबकि दलहन की 5 फसले इस प्रकार है - अरहर , चना , उड़द , मूंग, मसूर और तिलहन की 8 फसले है - सरसो , मूंगफली , सोयाबीन , तोरिया , तिल, केसर बीज , सूरजमुखी के बीज और रामतिल। इन सभी फसलों में किसानो उचित
MSP सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है।।
मंडियों के बंद होने की आशंका -
किसानो का सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP ) ख़त्म होने का है। इस कानून के माध्यम से सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति ( APMC )अर्तार्थ मंडी से बहार भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है।
मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज MSP पर लेते है ,लेकिन बहार कारोबार करने वालो के लिए MSP को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बहार MSP मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
सरकार ने कृषि कानून में कही पर भी मंडियों को ख़त्म करने के बात नहीं लिखी है, लेकिन इसका मंडियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। अता इसी बात से किसान भयभीत है , इसलिए आढ़तियों को भी डर बना हुआ है।।
इस मुद्दे पर किसान एवं आढ़ती एक साथ है। उनका मानना है कि मंडिया बचेगी तभी तो किसान उसमे MSP पर अपनी उपज बेच पायेगा।।
इस कानून में (वन कंट्री two मार्केट ) वाली स्थति पैदा हो गयी है , क्योकि मंडियों के अंदर टैक्स टैक्स का भुगतान होगा और मंडियों के बहार कोई टैक्स नहीं लगेगा। अभी मंडी से बहार जिस एग्रीकल्चर ट्रेड की सरकार ने व्यवस्था की है उसमे कारोबारी को टैक्स नहीं देना होगा , जबकि मंडी के अंदर औसतन 6 - 7 % तक का मंडी टैक्स लगता है।
किसानो का यह मानना है की आढ़ती या व्यापारी अपने 6 - 7 % टैक्स का नुक्सान न करके मंडी से बहार खरीद करेगा , जहा उसे कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। इसलिए इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति के कमजोर होने से किसान धीरे - धीरे बिलकुल बाजार पर निर्भर हो जायेगा , जहा उसकी उपज का दाम सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी।
किसानो के साथ ही राज्य सरकारों विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा को इस बात का डर है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानो से अनाज खरीदेंगे तो उन्हें मंडियों से मिलने वाले टैक्स का नुक्सान होगा। दोनों राज्यों को मंडियों से भारी मात्रा में टैक्स मिलता है , जिसे वे किसान कार्य में इस्तेमाल करते है।
केंद्र सरकार जो बात एक्ट में नहीं लिख रही है उसका ही वादा कर रही है , इसलिए किसानो में भ्रम फ़ैल रहा है। सरकार अपने आधिकारिक ब्यान में MSP जारी रखने और मंडिया बंद न होने का वादा कर रही है , किन्तु इस बात को एक्ट में नहीं लिख रही है। इसलिए किसानो में भ्रम कि स्तिथि है। किसानो का कहना है कि सरकार का कोई भी ब्यान एग्रीकल्चर एक्ट में MSP कि गारंटी देने कि बराबरी नहीं कर सकता है , क्योकि एक्ट का उलंघन करने पर सरकार को अदालत में खड़ा किया जा सकता है , जबकि आधिकारिक बयान का कोई आधार नहीं है।।
पंजाब और हरियाणा में ज्यादा विरोध का कारण -
पंजाब में होने वाले 85 % गेहू- चावल और हरियाणा में करीब 75 % गेहू और चावल MSP पर ख़रीदे जाते है। यही कारण है की इन राज्यों के किसानो को डर है की MSP की व्यवस्था ख़त्म हुई तो उनकी स्तिथि ख़राब होगी।
इन राज्यों के किसानो को किसानो को यह भी डर है की बिना MSP के उनकी फसल का बाजार मूल्य गिरेगा , इन्ही राज्यों ने MSP सिस्टम पर सबसे ज्यादा निवेश किया गया है और यहां मंडिया सबसे ज्यादा विकसित है यह एक बढ़िया सिस्टम है , जिसके जरिये किसान अपनी फसल बेच पाते है।
प्रत्येक वर्ष पंजाब और हरियाणा के किसान अच्छी तरह से विकसित मंडी व्यव्श्था के जरिये MSP पर FCI को अपनी लगभग पूरी उपज बेच पाते है , जबकि बिहार और अन्य राज्यों के किसान ऐसा नहीं कर पाते है , क्योकि वहां इस तरह की विकसित मंडी व्यवश्ता नहीं है।।
इसके अतिरिक्त बिहार के गरीब किसानो के विपरीत पंजाब और हरियाणा का समृद्ध और राजनितिक रूप से प्रभावशाली किसान समुदाय यह सुनिश्चित करता है की FCI उनके राज्यों से ही चावल और गेहू की सबसे बड़ी मात्रा में खरीद जारी रखे।
एक और जहा पंजाब और हरियाणा FCI को अपना लगभग पूरा उत्पाद (चावल एवं गेहू ) बेच पाते है , वही बिहार की सरकारी एजेंसियो द्वारा की जाने वाली कुल खरीद २% से भी काम है। इसी वजह से बिहार के अधिकांश किसानो को मजबूरन अपना उत्पाद 20 - 30 % तक की छूट पर बेचना पड़ता है।
पंजाब और हरियाणा के किसानो को डर है की उनकी स्थति भी कही बिहार एवं अन्य राज्यों के किसानो की तरह न हो जाये।।
( केंद्र सरकार और किसान सघठनो के मध्य वार्ता )
जब से किसान ने तीन नए कृषि कानूनों को मंजूरी प्रदान की है , तब से किसानो ने आंदोलन कर सरकार पर इन कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाया हुआ है।
इन कृषि कानूनों की प्रासंगिकता को लेकर सरकार और किसान प्रतिनिधियों के मध्य कई दौर की बात भी हो चुकी है , किन्तु अभी तक इस गतिरोध का कोई हल नहीं निकाल पाया है।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तथा अन्य मंत्रियो के साथ किसानो के 5 दौर की वार्ताय सम्पन्न हो चुकी है , किन्तु अभी भी किसान सरकार के बयान को स्वीकार नहीं कर रहे है। । इस सम्बन्ध में सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा है की सरकार किसान मुद्दों के प्रति सवेंदनशील है तथा MSP और मंडी व्यव्श्था को समाप्त नहीं किया जायेगा। किन्तु किसान सघठन सरकार के इस आधिकारिक बयान को मानने के लिए तैयार नहीं है।
किसान सघठनो ने केंद्र सरकार के साथ वार्ता के दौरान पांच सूत्री मांगे रखी है , जो MSP पर एक विशिस्ट कानून के रुपरेखा तैयार करती है , और चौथे दौर की पराली जलाने पर सजा के प्रावधान को समाप्त करती है।
इन्ही सब बातो को लेकर सरकार और किसान सघठनो के बीच लगातार बातें जारी है , किन्तु अभी समाधान नहीं निकल सका है ,किन्तु उम्मीद है की शीघ्र ही सरकार और किसान सघठन बातों द्वारा मामले को सुलझा लेंगे और किसानो का शांतिपूर्ण आंदोलन समाप्त हो सकता है।।
Comments
Post a Comment
If you having any doubt so let me know.